tulsi vihah भारत में तुलसी को अत्यंत पवित्र पौधा माना गया है, और हिंदू धर्म में इसे विशेष स्थान प्राप्त है। तुलसी का उपयोग धार्मिक अनुष्ठानों से लेकर आयुर्वेदिक उपचारों तक में किया जाता है। इस पवित्र पौधे का विवाह भी हर वर्ष कार्तिक माह की शुक्ल एकादशी को धूमधाम से मनाया जाता है, जिसे तुलसी विवाह के रूप में जाना जाता है। तुलसी विवाह का विशेष महत्व है, और इसके साथ कई कथाएँ जुड़ी हुई हैं। आइए तुलसी विवाह की कथा, महत्व, पूजा विधि और इस दिन पर बनाई जाने वाली खूबसूरत रंगोली के बारे में जानते हैं।
tulsi vihah का महत्व और कारण
तुलसी विवाह का हिंदू धर्म में अत्यधिक धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व है। तुलसी विवाह के साथ कार्तिक माह की एकादशी का भी गहरा संबंध है। इस दिन तुलसी का विवाह भगवान विष्णु के रूप में माने जाने वाले शालिग्राम के साथ होता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, तुलसी विवाह के आयोजन से घर में सुख-समृद्धि आती है और सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं। यह विवाह कुमारी कन्याओं और विवाहित महिलाओं के लिए खास माना जाता है, क्योंकि इसे सौभाग्य और सुखी वैवाहिक जीवन का प्रतीक माना गया है। ऐसा कहा जाता है कि तुलसी विवाह का आयोजन करने से कन्यादान का फल मिलता है।
तुलसी विवाह की कथा (Tulsi Vivah Katha)
tulsi vihah के पीछे एक पौराणिक कथा है जो कि धार्मिक पुस्तकों में वर्णित है। कथा के अनुसार, वृंदा नाम की एक परम पतिव्रता स्त्री थी, जो असुरराज जलंधर की पत्नी थी। वृंदा अपने पति से अत्यधिक प्रेम करती थी और उसकी रक्षा के लिए उसने भगवान विष्णु की आराधना की थी। वृंदा की तपस्या के कारण भगवान शिव भी जलंधर का वध नहीं कर पाए थे। तब भगवान विष्णु ने जलंधर का रूप धारण कर वृंदा के पतिव्रता धर्म को खंडित कर दिया, जिसके कारण जलंधर मारा गया।
जब वृंदा को इस धोखे का पता चला, तो उसने भगवान विष्णु को श्राप दे दिया कि वह पत्थर बन जाएँ। इसके बाद वृंदा ने अपने जीवन का त्याग कर दिया, और उनकी स्मृति में एक पौधा प्रकट हुआ, जिसे तुलसी के नाम से जाना गया। भगवान विष्णु ने वृंदा को उनकी भक्ति और प्रेम के प्रति सम्मान देने के लिए तुलसी विवाह का आयोजन किया और कहा कि जब तक संसार में विष्णु की पूजा होगी, तब तक तुलसी की पूजा भी होगी। इसीलिए हर साल भगवान शालिग्राम (विष्णु का प्रतीक) का विवाह तुलसी के साथ किया जाता है।
तुलसी विवाह की पूजा विधि (Tulsi Puja Vidhi)
तुलसी विवाह की पूजा विधि सरल लेकिन महत्वपूर्ण होती है, जिसे विधिपूर्वक करने से घर में सुख, शांति और समृद्धि आती है। यहाँ तुलसी विवाह पूजा की विधि बताई गई है:
- स्नान और पवित्रता: सबसे पहले सुबह स्नान कर के पवित्र मन और शुद्ध स्थान पर पूजा की तैयारी करें।
- तुलसी चौरा की सजावट: तुलसी के पौधे को अच्छे से साफ करके, रंगीन वस्त्र और फूलों से सजाएं। तुलसी चौरा के चारों ओर दीपक जलाएं और कलश में गंगाजल रखें।
- शालिग्राम का पूजा: भगवान शालिग्राम (विष्णु का प्रतीक) को भी सजाएं। शालिग्राम के समीप तुलसी के पौधे को रखा जाता है।
- विवाह का आयोजन: विवाह की तरह तुलसी और शालिग्राम का मिलन किया जाता है। आरती के बाद तुलसी और शालिग्राम को विवाह की सभी विधियों के साथ मिलाया जाता है।
- प्रसाद वितरण: पूजा के बाद प्रसाद को सभी में बांटें और भक्तों को तुलसी का प्रसाद दें।
तुलसी विवाह की रंगोली (Tulsi Vivah Rangoli)
tulsi vihah के अवसर पर रंगोली बनाने की परंपरा है। इस दिन लोग घरों के आंगन, तुलसी चौरा और पूजा स्थल के आसपास सुंदर रंगोलियाँ बनाते हैं। रंगोली बनाने का उद्देश्य न केवल सौंदर्य बढ़ाना है, बल्कि यह समृद्धि और सौभाग्य का प्रतीक भी माना जाता है।
- पारंपरिक डिजाइन: तुलसी विवाह के रंगोली में पारंपरिक डिजाइनों का उपयोग होता है जिसमें फूल, पत्ते, दीये, स्वास्तिक, ओम जैसे प्रतीक शामिल होते हैं।
- रंगों का चुनाव: रंगोली बनाने के लिए लाल, पीला, हरा और सफेद जैसे शुभ रंगों का उपयोग किया जाता है, जो खुशहाली का प्रतीक माने जाते हैं।
- दीये और फूल: रंगोली के चारों ओर दीपक जलाकर उसकी सुंदरता को और भी बढ़ा दिया जाता है। फूलों से भी इसे सजाया जा सकता है।
- तुलसी पौधे के चारों ओर सजावट: तुलसी चौरा के आसपास सुंदर रंगोली बनाकर और दीपक जलाकर इस पवित्र दिन को विशेष बनाया जाता है।
तुलसी विवाह 2024: तिथि और शुभ मुहूर्त (Tulsi Vivah 2024 Date and Time)
tulsi vihahहर साल कार्तिक माह की शुक्ल पक्ष की एकादशी को मनाया जाता है, जिसे देवउठनी एकादशी भी कहते हैं। 2024 में तुलसी विवाह की तिथि 11 नवंबर है। इस दिन का शुभ मुहूर्त प्रातःकाल और संध्या के समय होता है। पूजा का सबसे शुभ समय ब्रह्म मुहूर्त से लेकर सूर्यास्त तक होता है, और इस दिन व्रत रख कर विधिपूर्वक पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।
निष्कर्ष
तुलसी विवाह का आयोजन भारतीय समाज में धार्मिक, सांस्कृतिक और आध्यात्मिक दृष्टि से अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दिन तुलसी के पौधे को सजाकर शालिग्राम के साथ विवाह कराया जाता है। यह पर्व एकता, प्रेम और भक्ति का प्रतीक है और इसे मनाने से जीवन में सुख-समृद्धि आती है। रंगोली, दीये, पूजा विधि और श्रद्धा के साथ यह पर्व मनाकर भक्तजन देवी तुलसी का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं।